दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं के कारण लाखों लोगों की जान चली जाती है और न जाने कितने ही लोगों का जीवन बर्बाद हो जाता है. गुजरात की पृथा देसाई को भी प्रकृति के कोप का सामना करना पड़ा था. 32 घंटों तक अपने टूटे हुए घर के मलबे के नीचे फंसी रहने के बाद उन्हें वहां से निकाल लिया गया था. दुर्भाग्यवश उनकी दाहिनी बांह को काटना पड़ा था लेकिन वह अपने जीवन में उन गिरी हुई इमारतों की ही तरह फ़िर से और अधिक मजबूती से उठ खड़ी हुई थी.

साल 2001 में 26 जनवरी की सुबह जब पृथा सोई हुई थी तब उन्हें उनकी डरी-सहमी सी माँ ने उठाया और बिल्डिंग से बाहर निकालने की कोशिश करने को कहा. वह नींद में थी लेकिन अपने घर को हिलते हुए महसूस कर पा रही थी. वह अभी पार्किंग तक ही पहुंची थी जब पूरी इमारत ढह पड़ी. एक बड़ा पत्थर आकर 12 वर्षीय पृथा के सिर पर गिरा और वह बेहोश हो गई.
जब उन्हें होश आया तो उन्होंने स्वयं को मलबे से घिरा हुए पाया. उनका हाथ एक कार की खिड़की में फंस गया था और वह ज़रा भी हिल नहीं पा रही थी. पृथा ने YourDost [2] को एक इंटरव्यू में बताया, “इस दौरान मुझे बहुत प्यास लग रही थी. मैंने ज़मीन पर पानी गिरा देखा तो अपनी प्यास बुझाने के लिए उसे अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया.”

रैपिड एक्शन फाॅर्स टीम वहां पर बचाव कार्य के लिए पहुंची. उन्होंने मलबे को हटाने के लिए मशीनों का सहारा लिया और उस वजह से उनके ऊपर और मलबा गिरने लगा और वह और ज्यादा मलबे के नीचे धंस गई. अंततः एक मिलिट्री के जवान की नज़र उनपर पड़ी. उन्होंने एक जैक की मदद से उनके हाथ को चार से निकालने की कोशिश की लेकिन दुर्भाग्यवश वह ऐसा नहीं कर सके.
डॉक्टरों की एक टीम उनकी सहायता के लिए पहुंची और उन्होंने बताया की उन्हें पृथा की एक बांह काटनी पड़ेगी. पृथा उस दुर्घटना को याद करते हुए बताती हैं, “लेकिन एक समस्या यह थी कि डॉक्टर ने कहा कि वह मुझे बेहोश नहीं कर पाएंगे इसलिए उन्हें मुझे बिना बेहोश किए ही मेरी बांह काटनी पड़ी.” उन्होंने उनकी बांह को कसकर रस्सी से बाँध दिया और एक बड़े चाकू से उनका हाथ काट दिया.

इतने बड़े झटके के बाद पृथा की हालत में धीरे धीरे सुधार आ ही गया लेकिन वह बहुत ही निराश हो गई थी. उस समय उनके स्कूल के प्रिंसिपल के प्रेरणादायक शब्दों का उन पर बहुत गहरा असर हुआ.
पृथा ने अपनी MBBS की पढ़ाई पूरी की और उन्होंने मनोरोग चिकित्सा में MD की पढ़ाई की. उन्होंने लोगों की मदद करने के लिए डॉक्टर बनने का फैसला किया था. हम उन्हें अपनी बिखरी हुई ज़िन्दगी को अपने साहस और दृढ निश्चय की मदद से समेटने के लिए सलाम करते हैं.