पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के ढालाबारी गाँव से ताल्लुक रखने वाले करीम-उल-हक़ (Karim ul Haque) को यहां के लोग “एम्बुलेंस दादा” (Ambulance Dada) के नाम से जानते हैं।

करीम एक चाय के बागान में काम करते हैं। इसके अलावा वे बीमार,गरीब व कमजोर लोगों को अपनी बाइक पर जिला अस्पताल भी पहुंचाते हैं। वे बताते हैं कि कोई वाहन न होने के कारण उनकी बीमार माँ को वे अस्पताल नहीं ले जा पाए और उन्हें अपनी आँखों के सामने मरते देखा। लगभग 23 साल पहले सुविधाओं के आभाव में उन्होंने अपनी माँ को खो दिया, लेकिन अभी भी यहां गाँव में हालात नहीं बदली है।

“बाइक एम्बुलेंस” का ख्याल भी उन्हें एक घटना के कारण आया। एक बार काम करते हुए उनका एक सहकर्मी अचानक बेहोश हो गया और कोई दूसरा साधन न होने के कारण उन्होंने उसे अपनी बाइक पर बिठाया और अपने साथ कपड़े से बांध लिया। इसके बाद वे उसे 50 किलोमीटर दूर जिला अस्पताल ले गए।

उनके सहकर्मी को नया जीवन मिला और करीम को जीने की नई वजह। साल 1998 से उन्होंने “बाइक एम्बुलेंस” की सेवा शुरू की। करीम बताते हैं, “शुरू में लोग मुझ पर हँसते थे, लेकिन जब यही मदद उन्हें भी मिली तो उन्होंने मेरे काम को समझा और सम्मान दिया।”

जल्दी ही करीम आस-पास के लगभग 20 गांवों के लिए लाइफलाइन बन गए। इन गांवों में मोबाइल के नेटवर्क तो हैं लेकिन पक्की सड़कें और मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं हैं । करीम की “बाइक एम्बुलेंस” गर्भवती महिला के अतिरिक्त ज्यादातर मरीज़ों को अस्पताल पहुंचा ही देती है।

इतना ही नहीं, जलपाईगुड़ी जिला अस्पताल के सर्जन, डॉ सौमेन मंडल से उन्होंने प्राथमिक उपचार करने की ट्रेनिंग भी ली है, जैसे कि घाव साफ़ करना, या फिर इंजेक्शन लगाना, आदि, ताकि जब भी बाढ़ या फिर अत्यधिक ट्रैफिक की समस्या हो तो मरीज को सही देखभाल घर पर ही मिल सके। करीम को उनके काम के लिए भारत सरकार द्वारा “पदमश्री” से भी नवाज़ा गया है।
